? ~ आज का हिन्दू पंचांग ~ ?
⛅दिनांक 24 अप्रैल 2022
⛅दिन – रविवार
⛅विक्रम संवत – 2079
⛅शक संवत – 1944
⛅अयन – उत्तरायण
⛅ऋतु – ग्रीष्म
⛅मास – वैशाख
⛅पक्ष – कृष्ण
*⛅तिथि – नवमी प्रातः 04 :30 से रात्रि 02:52 तक तत्पश्चात दशमी
⛅नक्षत्र – श्रवण शाम 05:52 तक तत्पश्चात धनिष्ठा
⛅योग – शुभ रात्रि 11:04 तक तत्पश्चात शुक्ल
⛅राहुकाल – शाम 05:27 से 07:04 तक
⛅सूर्योदय – 06:12
⛅सूर्यास्त – 07:04
⛅दिशाशूल – पश्चिम दिशा में
⛅ब्रह्म मुहूर्त- प्रातः 04:43 से 05:27 तक
⛅निशिता मुहूर्त – रात्रि 12.15 से 01:00 तक
⛅ व्रत पर्व विवरण – सत्यसाई बाबा पूण्य स्मरण
⛅विशेष – नवमी को लौकी खाना गोमांस के समान त्याज्य है।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
?पेशाब में जलन होती हो तो?
?? कपड़े को गीला करके नाभि पर रखे तो पेशाब में और पेशाब की जगह होनेवाली जलन शीघ्र ही कम हो जायेगी |
– Rishi Prasad Dec’ 2012
?वास्तु शास्त्र ?
? एक घर में होना चाहिए एक मंदिर
एक घर में अलग-अलग पूजाघर बनवाने की बजाए मिल-जुलकर एक मंदिर बनवाए। एक घर में कई मंदिर होने पर वहां के सदस्यों को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
?घर में बरकत नहीं हो तो?
? घर में बरकत नहीं होती तो खडी हल्दी की सात गाँठे और खड़ा नमक कपडे में बांध लें और कटोरी में रख दें घर के किसी भी कोने में, बरकत होगी |
– ?Pujya Bapuji Prayagraj 10th Feb 2013
?ग्रीष्म ऋतु में आहार-विहार?
वैसे तो स्वस्थ व नीरोगी रहने के लिए प्रत्येक ऋतु में ऋतु के अनुकूल आहार-विहार जरूरी होता है लेकिन ग्रीष्म ऋतु में आदानकाल का समय होने से आहार-विहार पर विशेष ध्यान देना पड़ता है क्योंकि इसमें प्राकृतिक रूप से शरीर के पोषण की अपेक्षा शोषण होता है। अतः उचित आहार-विहार में की गई लापरवाही हमारे लिये कष्टदायक हो सकती है।
➡️वसंतु ऋतु की समाप्ति के बाद ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ होता है। सूर्य उत्तर दिशा की तरफ होने से उसकी प्रचंड गर्मी के कारण पृथ्वी एवं प्राणियों का जलीयांश कम हो जाने से जीवों में रूखापन बढ़ता है। परिणामस्वरूप पित्त के विदग्ध होने से जठराग्नि मंद हो जाती है, भूख कम लगती है, आहार का पाचन नहीं होता, अतः इस ऋतु में दस्त, उल्टी, कमजोरी, बेचैनी आदि परेशानियाँ पैदा हो जाती हैं। ऐसे समय में कम आहार लेना व शीतल जल पीना अधिक हितकर है।
➡️आहारः ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की तीव्र किरणों द्वारा संसार के जड़-चेतन का स्नेहांश सोख लेने के कारण रूक्ष रस की वृद्धि हो जाती है। अतः इस ऋतु में शीतवीर्य, मधुर रसयुक्त पदार्थ एवं स्निग्ध तथा बलवर्धक खाद्य व पेय पदार्थों का सेवन उपयोगी होता है। वाग्भट के अनुसार ग्रीष्मकाल में मीठे, हल्के, चिकनाई युक्त, शीतल व तरल पदार्थों का सेवन विशेष रूप से करना चाहिए। इस ऋतु में फलों में तरबूज, खरबूजा, मौसम्बी, सन्तरा, केला, मीठे आम, मीठे अंगूर आदि, सब्जियों में परवल, करेला, पके लाल टमाटर, पोदीना, हरा धनिया, नींबू आदि का सेवन करें।
➡️विहारः इस ऋतु में प्रातः वायु सेवन, योगासन, व्यायाम, तेल मालिस हितकारी है।
➡️अपथ्यः तेज मिर्च-मसालेवाले, तले, नमकीन, रूखे, बासे, कसैले, कड़वे, चटपटे, दुर्गन्ध युक्त पदार्थों का सेवन न करें। देर रात तक जागना, सुबह देर तक सोना, दिन में सोना, अधिक देर तक धूप में घूमना, कठोर परिश्रम, अधिक व्यायाम, अधिक स्त्री-पुरुष का सहवास, भूख-प्यास सहन करना, मलमूत्र के वेग को रोकना हानिप्रद है।
?विशेषः ग्रीष्म ऋतु में पित्त दोष की प्रधानता से पित्त के रोग अधिक होते हैं जैसे दाह, उष्णता, आलस्य, मूर्च्छा, अपच, दस्त, नेत्रविकार आदि। अतः गर्मियों में घर से बाहर निकलते समय लू से बचने के लिए सिर पर कपड़ा रखें व एक गिलास पानी पीकर निकलें। जेब में कपूर रखें। गर्मियों में फ्रीज का ठंडा पानी पीने से गले, दाँत, आमाशय व आँतों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अतः फ्रीज का पानी न पीकर मटके का या सुराही का पानी पियें।