बाबा बन्दा सिंह बहादुर जी के शहीदी दिवस पर उन्हें नमन करते हुए एडवोकेट दमनप्रीत सिंह ने कहाकि वे पहले ऐसे सिख सेनापति थे जिन्होंने मुगलो के अजेय होने का भरम तोड़ा। 1709 ई में गुरु गोविन्द सिंह जी के आदेश पर बंदा सिंह बहादुर मुग़लों से सिखों की रक्षा करने हेतु पंजाब के लिए निकल पड़े जहां उन्होंने सिख सेना, मुग़लों के आतंक से परेशान हिन्दुओं तथा आम जनता की मदद से मुग़लों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया ओर समाना के युद्ध में उनके नेतृत्व में सिख सेना ने मुग़लों के लगभग दस हज़ार सैनिकों को मार कर यह युद्ध जीत लिया। इस जीत के बाद भले ही सिख सेना के हौंसले बुलंद थे मगर बंदा सिंह बहादुर का मन अभी तक विचलित था, उनके मन की आग अभी तक शांत नहीं हुई थी क्योंकि छोटे साहिबजादों का हत्यारा वज़ीर खान अभी तक जीवित था। अपने प्रतिशोध के लिए बंदा सिंह को अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी ओर 1710 ई में बंदा सिंह बहादुर के संरक्षण में सिख सेना ने सरहिंद पर चढ़ाई कर दी तथा चप्पर चिड़ी के युद्ध में बंदा सिंह बहादुर ने सरहिंद के फौजदार वज़ीर खान को मौत के घाट उतार दिया। उन्हीने सर्बनसदानी गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा संकल्पित प्रभुतासम्पन्न लोकराज्य की राजधानी लोहगढ़ में खालसा राज की नींव रखी। कश्मीर के राजोरी इलाके में जन्मे बाबा बन्दा सिंह ने गुरु नानक देव जी व गुरु गोबिंद सिंह जी के नाम के सिक्के चलाए।जाति-पाति के भेदभाव समाप्त करके उन्होंने किसान- मजदूरों को जमीन का मालिकाना हक दिलाया।
गुरु गोबिंद सिंह जी के सम्पर्क में आने के पश्चात माधोदास से बन्दा सिंह बहादुर बने इस महान सिख जरनैल ने सिख सम्राज्य का विस्तार किया। मुगलो को नाकों चने चबाने वाले महान योद्धा बाबा बन्दा सिंह बहादुर ने बन्दी बनाए जाने पर अनेक अमानवीय यातनाएं सहन करते हुए अपने प्राण त्याग दिए लेकिन सिख धर्म नही छोड़ा। असहाय लोगों के अधिकार तथा अपने लोगों की रक्षा के लिए अंतिम साँस तक सीना तान कर दुश्मनों के सामने खड़े रहने वाले बंदा सिंह बहादुर से आने वाली पीढियां निश्चय ही प्रेरणा ग्रहण करेंगी।