नाराजगी, दुश्मनी,तकरार व विरोधाभास दूर करने का पवित्र त्यौहार है होली।
पौरुष और युद्ध कला के प्रदर्शन के प्रतीक होला मोहल्ला व पवित्र त्यौहार होली की समूह संगत व देशवासियों को लख-लख बधाई देते हुए इनेलो प्रदेश प्रवक्ता ओंकार सिंह ने कहाकि ” लोकां दीआं होलियां ते खालसे दा होला ” सिक्खों के पवित्र धर्मस्थान तख्त श्री आनन्दपुर साहिब में होली से अगले दिन हर वर्ष मनाया जाता है। सिख धर्म के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह जी ने होली के अगले दिन ‘होला’ मनाने की परंपरा शुरू की थी। माना जाता है कि उन्होंने होली के होला शब्द इसलिए इस्तेमाल किया, ताकि इसे पौरुष के पर्व के तौर पर मनाया जाए। वह चाहते थे कि इसके जरिए समाज के गरीब और कमजोर वर्गों को आगे लाया जाए। इस दिन पंज प्यारे जुलूस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते हैं। निहंग सिख तलवार बाजी और घुड़सवारी समेत कई सारे करतब दिखाते हैं। इस मौके पर गुरुद्वारा श्री अनन्दपुर साहिब की सजावट की जाती है और विशाल लंगर का आयोजन भी किया जाता है। समय के साथ-साथ होला मोहल्ला के स्वरुप में परिवर्तन हुआ लेकिन मूल भावना यही रही, यु’द्ध कला का प्रदर्शन। पूरे देश से सिख समुदाय के लोग होला मोहल्ला देखने श्री आनंदपुर साहिब पहुँचते हैं। आज जहां समाज में आपसी कटुता, नफरत व साम्प्रदायिकता का माहौल व्याप्त है और भिन्न समुदाय के लोग एक दूसरे से द्वेष व वैर की भावना दिल मे रखे हुए हैं ऐसे में होला मोहल्ला के त्योहार का महत्व काफी बढ़ जाता है क्योंकि इससे परस्पर प्यार, सत्कार व भाईचारे की भावना का प्रचार प्रसार होता है। नाराजगी, दुश्मनी,तकरार व विरोधाभास दूर करने के पवित्र त्यौहार के रूप में भी माना जाता है होली का त्यौहार। हम सब का राष्ट्रहित में कर्तव्य भी यही बनता है देश व प्रदेश के विकास, तरक्की व उन्नति के लिए भाईचारे व प्यार की भावना को बढ़ाने का कोई भी मौका न छोड़ा जाए ताकि हमारा भारत विश्वगुरु बन सके।