पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि हालांकि वर्ष 2002 में केंद्र में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के दौरान देश की संसद द्वारा भारत के संविधान में 86 वां संशोधन कर शिक्षा के अधिकार के नाम से एक नया मौलिक अधिकार अर्थात संविधान में अनुच्छेद 21ए डाला गया था जिसमें यह उल्लेख किया गया कि सरकार द्वारा छः वर्ष से 14 वर्ष तक की आयु के हर बच्चे को नि:शुल्क (फ्री) और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने हुए प्रावधान किया जाएगा. उक्त संवैधानिक संशोधन को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलम की स्वीकृति तो दिसंबर, 2002 में प्राप्त हो गयी थी हालांकि उसे क्रियान्वित करने के लिए अगस्त, 2009 में संसद द्वारा नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 बनाया गया हालांकि उपरोक्त दोनों कानूनों को केंद्र की तत्कालीन मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार द्वारा 1 अप्रैल 2010 से देश में लागू किया गया था.
हेमंत ने आगे बताया कि उपरोक्त 2009 कानून के अंतर्गत प्रारंभिक शिक्षा की परिभाषा है पहली कक्षा से आठवीं कक्षा तक की शिक्षा. इस कानून की धारा 3 के तहत हर बच्चे जिसकी आयु 6 वर्ष से 14 वर्ष के बीच होगी को अपने पड़ोस में स्थित स्कूल में नि:शुल्क और अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होगा. यह कानून न केवल सरकारी एवं सरकार से अनुदान प्राप्त बल्कि प्राइवेट स्कूलों पर लागू होता है हालंकि प्राइवेट स्कूलों हेतु धारा 12 में उल्लेख है कि वह पहली कक्षा में न्यूनतम 25 प्रतिशत की सीमा तक आसपास के पिछड़े/दुर्बल वर्ग और अलाभित समूह के बच्चो को प्रवेश देंगे एवं वह ऐसा उनकी निशुल्क और प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने तक करेंगे. इस कानून की धारा 38 में केंद्र सरकार द्वारा अप्रैल, 2010 में जबकि हरियाणा सरकार द्वारा जून, 2011 में नियम बनाकर लागू किये गए थे.
इसी सप्ताह सोमवार 28 मार्च को हरियाणा सरकार के स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा एक नोटिफिकेशन जारी कर हरियाणा स्कूल शिक्षा नियमावली, 2003 के नियम संख्या 134 ए को समाप्त किया गया है. हेमंत ने बताया कि सर्वप्रथम 15 वर्ष पूर्व 19 जनवरी 2007 में नियम 134 ए को उपरोक्त नियमावली में डाला गया था जिसमें उल्लेख था कि मान्यता प्राप्त प्राइवेट स्कूल गुणवान (मेरिटोरियस) गरीब बच्चो के लिए 25 % सीटें आरक्षित रखेंगे एवं उनसे उसी दर पर फीस ली जायेगी जो सरकारी स्कूलों में ली जाती है. जो फीस का अंतर होगा, वह सम्बंधित प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहे अन्य बच्चों से वसूल किया जाएगा. इसके बाद 19 जून, 2013 को उक्त नियम 134 ए को पूर्णतया बदलकर यह उल्लेख कर दिया गया है कि मान्यता प्राप्त प्राइवेट स्कूलों द्वारा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (ई.डब्ल्यू. एस.) एवं गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले (बीपीएल ) श्रेणी के गुणवान बच्चों के लिए 10 % सीटें आरक्षित की जाएंगी. इन बच्चो से वही फीस ली जायेगी जो सरकारी स्कूलों में ली जाती है. हालांकि नियम में स्पष्ट उल्लेख हो नहीं डाला गया परन्तु ऐसी व्यवस्था की गयी थी उपरोक्त नियम की अनुपालना से जो घाटा उक्त प्राइवेट स्कूलों को होगा, प्रदेश सरकार सम्बंधित स्कूलों को पर्याप्त धनराशि देकर इस आशय में उनकी प्रतिपूर्ति करेगी हालांकि सरकार द्वारा ऐसी अदाएगी में विलम्ब होता रहा है जिससे गत वर्ष प्राइवेट स्कूलों ने उक्त नियम 134 ए के अंतर्गत गरीब बच्चों को दाखिला देना भी बंद कर दिया जिससे प्रदेश के कई ज़िलों में इस मामले ने तूल भी पकड़ा था.
हालांकि अब ऐसा दावा किया जा रहा है कि नियम 134 ए के समाप्त होने के बाद आरटीई कानून में गरीब और पिछड़े वर्ग के बच्चो को प्राइवेट स्कूलों में प्रवेश दिया जाएगा हालांकि हेमंत का कहना है कि आरटीई कानून, 2009 तो देश की संसद द्वारा बनाया गया एवं गत 12 वर्षों से यह पूरे देश में ही लागू है एवं इसे अपने अपने प्रदेश में सख्ताई से लागू करना हर राज्य सरकार की कानूनी जिम्मेदारी है.