September 12, 2023 ( प्रेस की ताकत )
सदियों से प्रचलित दहेज प्रथा आज भी एक गंभीर सामाजिक समस्या बनी हुई है। एक तरफ वे लोग हैं जो वैवाहिक बंधन के नाम पर सौदेबाज़ी करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते तो दूसरी ओर समाज में एक ऐसा स्वार्थी वर्ग पनप रहा है जो दहेज विरोधी कानून का दुरुपयोग करने में किंचित मात्र भी संकोच नहीं करता। बीते दिनों एक ऐसे ही झूठे मामले के विरुद्ध कड़ा संज्ञान लेते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला द्वारा ससुराल पक्ष पर लगाए गए झूठे दहेज उत्पीड़न एवं दुष्कर्म के आरोपों को ‘घोर क्रूरता’ बताते हुए अक्षम्य करार दिया। निस्संदेह, दहेज प्रथा समूचे समाज के लिए अभिशाप है, जिसके कारण अनेक बेटियों को मानसिक, शारीरिक अथवा सामाजिक संताप झेलना पड़ता है। आईपीसी-1860 के सामान्य प्रावधान को सशक्त बनाने के उद्देश्य से ही साल 1983 में इसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए जोड़ी गई। इसके तहत, कोई महिला पति अथवा ससुरालजनों द्वारा क्रूरतापूर्ण व्यवहार करने या मानसिक, शारीरिक अथवा अन्य किसी प्रकार से प्रताड़ित किए जाने पर इसके विरोध में शिकायत दर्ज़ करा सकती है। दोष सिद्ध होने पर अपराधी को भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत, 3 वर्ष की क़ैद तथा जुर्माना हो सकता है अथवा दहेज अधिनियम, 1961 के अनुसार, पांच वर्ष की क़ैद तथा 15,000 रुपये तक जुर्माना भरना पड़ सकता है।ज्ञातव्य है, पत्नी द्वारा दहेज उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज़ करवाने के कारण दो वर्ष तक मानसिक दबाव झेलने वाले राजधानी दिल्ली निवासी 45 वर्षीय राजेश जायसवाल ने इस संदर्भ में एक वीडियो जारी करते हुए आत्महत्या कर ली थी। बाराबंकी का विकास भी आईपीसी की धारा 498-ए का मुकदमा लिखे जाने तथा ससुरालजनों द्वारा दी गई प्रताड़ना न सह पाने के कारण जीवन की जंग हार बैठा।