जालंधर, 20 नवम्बर (प्रेस की ताकत बयूरो)- केंद्र सरकार की तरफ से लागू किये गए तीन खेती कानूनों को मोदी सरकार ने अब रद्द करन का ऐलान कर दिया है। इस का सब से अधिक प्रभाव पंजाब पर पड़ेगा। पंजाब में किस राजनैतिक पार्टी को कितना और कैसे लाभ होगा, यह सवाल लगभग हर पंजाब निवासी के मन में है। पंजाब में 2022 के शुरू में विधान सभा की मतदान होनीं हैं। सब राजनैतिक पार्टियों का ध्यान इस तरफ़ लगा हुआ है। किसान बिल पंजाब के लिए एक बड़ा राजनैतिक मुद्दा थे। इन को अब रद्द करन का ऐलान कर दिया गया है। अब बड़ा सवाल यह होगा कि आख़िर अब कौन से मुद्दे को कैश किया जाये। सब राजनैतिक पार्टियों के लिए किसान बिलों का रद्द होना एक अलग तरह का मुद्दा है। हर राजनैतिक पार्टी इस को अपने हिसाब के साथ टैकल करन की कोशिश करेगी।
भाजपा पर असर
किसान बिलों के लागू होने और उन के रद्द होने दोनों का ही सब से बड़ा प्रभाव भाजपा पर ही पड़ा है। भाजपा के कुछ नेताओं के कपड़े फाड़े गए, कुछ भाजपा नेताओं के साथ मारपीट की गई, कुछ दूसरे भाजपा नेताओं की मोटर गाड़ीयाँ तोड़ीं गई। इस के इलावा भाजपा के नेताओं को सूबो में सड़कें पर उतरना कठिन हो गया। ऊपर से आ रही विधान सभा मतदान पार्टी के लिए परेशानी वाली स्थिति पैदा कर रही थीं क्योंकि इस हालत में मतदान लड़नीं संभव ही नहीं थे। अब पंजाब में भाजपा अकेले ही मतदान लड़ रही है। यह पहली बार है जब भाजपा पंजाब में अकाली दल से बिना ही चयन मैदान में उतरेगी। भाजपा के प्रांतीय प्रधान दुश्यंत गौतम भी यह दावा कर चुके हैं कि पार्टी सब 117 सीटों पर चयन लड़ेगी। ऐसे हालात में भाजपा के लिए उक्त फ़ैसला एक बड़े लाभ का सौदा होगा। यह भी चर्चा है कि जो किसान कानूनों को ले कर विरोध कर रहे थे, क्या वह अब भाजपा को वोट पाउणगे?
अकाली दल की रणनीती
पंजाब में शिरोमणी अकाली दल भाजपा से अलग हो कर अब बसपा के साथ चयन मैदान में उतर चुका है। बसपा को 117 में से 20 सीटों दीं गई हैं। भाजपा को शिरोमणी अकाली दल की तरफ से 23 सीटों दीं जातीं थीं। किसानों का मुद्दा अब ख़त्म होने वाला है परन्तु शिरोमणी अकाली दल पर यह दोष सदा बरकरार रहेंगे कि उस ने बिल बनाऐ जाने के फ़ैसले का विरोध नहीं किया था। वास्तव में बिल बनाते समय जो बैठकों हो रही थीं, उस समय भी केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल हर बार उस का हिस्सा होती थी। वैसे भी किसान बिलों को ले कर बेशक हरसिमरत कौर ने इस्तीफ़ा दे दिया था परन्तु यह फ़ैसला भी बहुत देरी के साथ लिया गया। इस का प्रभाव पार्टी पर पड़ सकता है।
कांग्रेस का ख़ैमा भारी
पंजाब में विधान सभा की मतदान से पहले कांग्रेस ने कई कदम उठाए, जिस कारण वह पहले के मुकाबले कुछ मज़बूत हो गई। कांग्रेस ही वह पार्टी थी, जिस ने किसान आंदोलन को हवा दी और किसानों को दिल्ली की तरफ कूच करन का आईडिया दिया, नहीं तो उस से पहले किसान पंजाब में रेलवे ट्रैकों पर बैठे थे और उस का केंद्र पर कोई प्रभाव नहीं हो रहा था। जब किसान दिल्ली जा कर बैठे तो कुछ हद तक केंद्र सरकार पर प्रभाव होना शुरू हुहैं। इस लिए किसानों के मन में यह बात साफ़ है कि कांग्रेस ने उन को न सिर्फ़ रास्ता दिखाया, बल्कि समय -समय पर उन के मुद्दों को भी आगे बढ़ाया। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने ख़ुद ट्रैक्टर चला कर किसानों की हिमायत को कैश करन की कोशिश की थी।
‘आप ’ की योजना
किसान आंदोलन अब शायद ख़त्म हो जायेगा और पंजाब में अब तक ठंडी पड़ी असेंबली मतदान की तैयारी फिर से ज़ोर पकड़ लेगी। इस मसले पर आम आदमी पार्टी कौन सी रणनीति अपणाउंदी है, यह बिल्कुल स्पष्ट नहीं परन्तु पार्टी के प्रमुख अरविन्द केजरीवाल ने जिस तरह इस फ़ैसले का स्वागत किया है, उसे देखते लगता है कि पार्टी आने वाले दिनों में पंजाब में इस मसले को कैश करन के लिए कोई बड़ी योजना बना सकती है। बताने योग्य है कि केजरीवाल ने 19 नवंबर के दिन को ऐतिहासिक बताया और 26 जनवरी और 15 अगस्त की तरह इस दिन को भी याद रखने की बात कही।