🔸 आज बृहस्पतिवार, 24 अक्तूबर 2024 को है अहोई अष्टमी
🔸 करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद अष्टमी तिथि को देवी अहोई माता का व्रत किया जाता है । यह व्रत बच्चों की लम्बी आयु और सुखमय जीवन की कामना से माताएं करती हैं ।
🔸 कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को यह व्रत रखा जाता है । इसलिए इसे अहोई अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है ।
♦ अहोई अष्टमी व्रत की कथा ♦
⚡ प्राचीन काल में एक साहुकार था । जिसके सात बेटे और सात बहुएं थीं । इस साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी । उस समय कच्चे मकान हुआ करते थे । दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गईं तो ननद भी उनके साथ चली गईं ।
⚡ साहुकार की बेटी जहाँ मिट्टी काट रही थी, उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने सात बेटों के साथ रहती थी । मिट्टी काटते हुए ग़लती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया । स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांध दूँगी । तुझे कोई सन्तान नहीं होने दूँगी ।
⚡ स्याहू के वचन सुन कर साहूकार की बेटी कांप उठती है । अपनी सातों भाभियों से एक-एक करके विनती करती है कि ‘वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा ले और मुझे बख्श दे ।
⚡ सबसे छोटी भाभी ननद के बदले, अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है । इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं, वे सात दिन बाद मर जाते हैं । सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने किसी पंडित जी को बुलवाकर इसका उपाय पूछा । पंडित जी ने सुरभी गाय की सेवा करने की सलाह दी । सुरभी गाय सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है । रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगती हैं ।
⚡ अचानक साहुकार की छोटी बहू की नज़र एक ओर जाती है । वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है, उसे उन बच्चे पर दया आ जाती है और वह सांप को मार देती है । इतने में गरूड़ पंखनी वहाँ आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहु ने उसके बच्चे को मार दिया है । इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है । छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है । यह सुनकर गरूड़ पंखनी खुश होती है और सुरभी सहित उन्हें स्याहु के पास पहुँचा देती है ।
⚡ स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का अशीर्वाद देती है । स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र एवं पुत्र वधुओं से हरा-भरा हो जाता है ।
⚡ अहोई का अर्थ है ‘अनहोनी को होनी में बदल देना ।’ जैसे साहुकार की छोटी बहू के साथ घटित हुआ ।
♦ अहोई व्रत की विधि ♦
🔸 व्रत के दिन प्रात: उठ कर स्नान करें और पूजा पाठ करके संकल्प करें कि अपनी सन्तान की लम्बी आयु एवं सुखमय जीवन के लिए मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूँ । अहोई माता मेरी सन्तान को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखे ।
🔸 अनहोनी को होनी बनाने वाली माता देवी पार्वती हैं । इसलिए माता पर्वती की पूजा करें । अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दिवार पर अहोई माता का चित्र बनायें और साथ ही स्याहु और उसके सात पुत्रों का चित्र बनायें । संध्या काल में इन चित्रों की पूजा करें । अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है, जिसे स्याहु कहते हैं । इस स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है । पूजा चाहे आप जिस विधि से करें, लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें । पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं । कथा सुनने एवं पूजा के पश्चात सासु माँ के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें । यदि सासु माँ नहीं हैं तो उनके समान किसी माता के चरण छूकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें । फिर इसके पश्चात व्रती अन्न जल ग्रहण करे ।
🔸 व्रत करने वाली स्त्री को इस दिन उपवास रखना चाहिए । सायं काल दीवार पर अष्ट कोष्ठक की अहोई की पुतली रंग भर कर बना लें या फिर बना बनाया चार्ट बाजार से खरीद सकती हैं ।
🔸 सूर्यास्त के बाद तारे निकलने पर अहोई माता की पूजा प्रारम्भ करने से पहले ज़मीन को साफ करें । फिर चौक पूर कर, एक लोटे में जल भर कर एक पटरे पर कलश की तरह रख कर पूजा करें । पूजा के लिए मातायें पहले से चाँदी का एक अहोई या स्याऊ और चाँदी के दो मोती बनवाकर डोरी मे डलवा लें । फिर रोली, चावल व दूध-भात से अहोई का पूजन करें । जल से भरे लोटे पर स्वास्तिक बना लें । एक कटोरी में हलवा तथा सामर्थ्य के अनुसार रूपए का बायना निकाल कर रख लें और हाथ में सात दाने गेहूँ लेकर कथा सुनें । कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहन लें और जो बायना निकाला था, उसे सासू जी के चरण स्पर्श करके उन्हें दे दें । इसके बाद चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन करें ।
🔸 दीपावली के पश्चात किसी दिन अहोई को गले से उतार कर उसका गुड़ से भोग लगायें और जल के छीटें देकर आदर सहित स्वच्छ स्थान पर रख दें ।
🔸 जितनी सन्तान अविवाहित हों, उतनी बार एक-एक तथा जितनी सन्तान का विवाह हो गया हो, उतनी बार दो-दो चाँदी के दाने अहोई मे डालती जायें । ऐसा करने से अहोई देवी प्रसन्न होकर आपकी सन्तान की दीर्घायु करके घर मे मंगल करती हैं । इस दिन ब्राह्मणों को पेठा दान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है ।
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