योग देव परंपरा से आज तक
संपूर्ण विश्व के लिए भारतवर्ष की एक महान देन है- योग। योग वस्तुतः समस्त मोक्ष साधनाओं में से सर्वोत्तम तथा श्रेष्ठतम साधना पद्धति है । योग विद्या संपूर्ण विश्व के मानव का कल्याण करती है। क्योंकि योग साधना इस सृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही आरंभ हुई है अतः यह किसी धर्म विशेष की पद्धति नहीं है अपितु संपूर्ण विश्व के लिए कल्याणकारी है। योग नवीन खोजो का परिणाम नहीं है यह प्राचीन से प्राचीनतम गुप्त विद्या है जिसका ज्ञान समय के साथ विभिन्न कारणों से जनसाधारण की पहुंच से दूर होता गया।
वर्तमान समय में हमारा भारत विश्व का योग गुरु कहलाता है। हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के प्रयासों से 21 जून को संपूर्ण विश्व में ‘योग दिवस’ मनाया जाता है जो हमारे लिए अत्यंत गर्व की बात है।यह हमारी संस्कृति पर गर्व का दिन है तथा पुनः हमें अपनी जड़ों तक ले जाने का एक प्रयास है।
योग परम साम्यता की स्थिति है। भगवान शिव को आदियोगी तथा श्री कृष्ण को योगिराज तथा योगेश्वर कहा जाता है। भगवान ब्रह्मा, विष्णु, शिव की योग परम्परा से होता हुआ आज यह योग सामान्य मनुष्य की पहुंच में है। कुछ कठिन, कुछ सरल अभ्यास के द्वारा अपनी सांसों पर नियन्त्रण करते हुए सम्यक आहार अथवा निराहार रहते हुए एक लय में स्थित होकर अपने भीतर उतरना । अपने भीतर की आलौकिक दुनिया में पहुंचकर ईश्वर से एकाकार करना, उस परमसत्ता में स्वयं को खो देना। यही है योग । योग में स्थित मनुष्य में सदा एक साम्यता बनी रहती है, एक आनन्द सदा जगा रहता है। सुख-दुःख, अच्छा-बुरा कुछ भी एक योगी के लिए मायने नहीं रखता उसके पास जो है वह केवल आनन्द है। सांसारिक भोग उसे आनन्दित नहीं करते क्योंकि उसके पास स्वयं का दिव्य आनन्द है। इसीलिए अधिकांश योगी एकान्त वास करते है जबकि कुछ को अपने लिए उस परमसत्ता द्वारा निर्धारित किए गए कार्यों का बोध हो जाता है और वे इसी जगत के प्राणियों के बीच रह कल्याणार्थ कार्य करते है। प्राचीन समय के सभी ऋषि, मुनि, महर्षि जिन्होंने अपने योग से अर्जित किए गए ज्ञान को ग्रंथों वा पुराणों के रूप में हमें दिया। चिकित्सा जगत आंयुर्वेद, शस्त्र-शास्त्र, संगीत, ज्योतिष, खगोलशास्त्र, ग्रह नक्षत्र का ज्ञान आदि अनेक अमूल्य निधियाँ उनके योग और तप के परिणाम स्वरुप ही हमें मिली हैं। हमारे गुरु व संत परंपरा में संत रविदास, कबीर दास, श्री रामकृष्ण परमहंस, दयानंद सरस्वती, शंकराचार्य जी, स्वामी विवेकानंद, लहाड़ी महाशय, मुक्तेश्वरआनंद जी, श्री परमहंस योगानंद जी आदि अनेकों सिद्ध पुरुष स्वयं सिद्ध योगी होते हुए भी जनकल्याण के कार्यों में सदा तत्पर पर रहे।
योग का एक प्रसंग बताना यहां अति उत्तम है । संत रविदास जी जिन्होंने एक रोती हुई जा रही स्त्री के गंगा जी में खोए हुए कंगन अपनी कठौती में से ही निकाल कर दे दिए जिससे कि कहावत बनी ‘ मन चंगा तो कठौती में गंगा‘। ऐसे ही सरल हृदय होते हैं हमारे योगिजन। इसीलिए संपूर्ण विश्व आज भारत की ओर आकर्षित हो रहा है।सभी योग साधनाओं का एक ही परम लक्ष्य होता है ब्रह्म की प्राप्ति तथा ब्रह्म का साक्षात्कार। योग एक कार्य नहीं बल्कि साधना है साधना के बल पर ही हमारे ऋषि मुनी असंभव से भी असंभव कार्य कर जाते थे और आज भी करते हैं । वे इसी साधना से पृथ्वी लोक में रहते हुए ग्रह नक्षत्र का ज्ञान, उनकी दूरी, उनका परिक्रमा पथ,समय, सूर्य चंद्र के ज्ञान से सटीक गणना करना, भविष्य जानना, पृथ्वी के अंदर बाहर और इस संपूर्ण ब्रह्मांड का ज्ञान प्राप्त करते थे। उनके इसी योगबल से दिए गए ज्ञान से आज बिना अधिक प्रयास के हम नित नए आयामों को प्राप्त करते हैं।
योग के अनेकों ग्रंथ हमें प्राप्त होते हैं जिसमें महर्षिवाल्मिकी द्वारा रचित ‘योग वशिष्ठ ‘ योग का असाधारण ग्रंथ है जिसमें महर्षि वशिष्ठ द्वारा श्री रामचंद्र जी को योग की शिक्षा दी गई। महर्षि पतंजलि ने ‘योग सूत्र’ की रचना कर योग को सर्व सुलभ बनाया जो आज जनसाधारण में सर्वमान्य ग्रंथ है। इनके अतिरिक्त वेदव्यास जी द्वारा रचित योगभाष्य, वाचस्पति मिश्र रचित तत्त्ववैशारदी , याज्ञवल्क्य द्वारा रचित योगयाज्ञवल्क्य आदि योग विद्या के अनेकों ग्रंथ हमें मिलते हैं। योग बल को प्राप्त करने के लिए तथा एक योगी बनने के लिए छल- कपट से दूर हानि – लाभ से रहित निर्मल, सरल मन का होना अति आवश्यक है साथ ही जनकल्याण की भावना भी होने से यह मन तथा शरीर निर्मल हो जाता है तथा योग में अत्यंत आश्चर्यजनक परिणाम मिलते हैं जिन्हें चमत्कार कहा जाता है परंतु ये चमत्कार पहले से ही हमारी सृष्टि में विद्यमान होते हैं केवल योग बल से उन्हें प्रकट किया जाता है। इतना महान है हमारा योग।
योग शब्द का अर्थ है – जीवात्मा तथा परमात्मा का मिलन । जो विद्या इस गुह्य ज्ञान को प्राप्त करने का मार्ग बतलाती है वह योग शास्त्र कहलाती है। योग को चार मुख्य भागों या मार्गों के रूप में विकसित किया गया– 1. राजयोग 2. हठयोग 3. मंत्रयोग 4. लययोग
राजयोग को अष्टांग योग भी कहा जाता है। पातंजलि योग सूत्र में राजयोग के 8 अंग है जो निम्न है-
“यमनियमासनप्राणायमप्रत्याहा
रधारणाध्यानसमाधयोष्टावंगानि ॥” (2/29)
अर्थात् – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि राजयोग के 8 अंग है।
वर्तमान समय में पूर्ण ज्ञान न होने के कारण योग के केवल 2 ही अंगो को प्रधानता मिल रही है– एक आसान, दूसरा प्राणायाम तथा जो इसे आगे निकल जाता है वह ध्यान में उतरता है जो योग का सातवां अंग है । इसलिए यहां हम वर्तमान समय में प्रचलित आसन और प्राणायाम की बात करेंगे।
आसन – स्वयं को कष्ट में रखकर किसी आसन में बैठना उचित आसन नहीं है।
‘ स्थिरसुखमासनम‘ जिस आसन में सुख पूर्वक स्थिर होकर बैठा जाए वही आसान है। यदि हम आसन की बात करें तो योग ऋषियों के अनुसार इस पृथ्वी पर जितनी भी योनियां है उन सभी का एक आसन है – जैसे बगुलासन, वृक्षासन, मत्स्यासन, गरुड़ासन, भुजंगासन, गोमुखासन, सिंहासन आदि आदि। यदि व्यक्ति शारीरिक रूप से असहाय है तो भी उसके लिए कोई ना कोई आसान करने योग्य है जैसे खड़े होकर करने वाले आसन, बैठकर करने वाले आसन तथा लेट कर करने वाले आसन। योगासन के कुछ नियम हैं उन्हें जानिए और अपनाइए। प्रत्येक आसन सांसों को लेने और बाहर छोड़ने की लय के साथ होता है। किसी आसन को करते समय आप अपने शरीर को सुख पूर्वक जितना मोड सकते हैं केवल उतना ही मोड़िए अन्यथा हानि होने की संभावना है।
प्राणायाम– सांसों को भीतर – बाहर एक लय के साथ लेना एवं छोड़ना ही प्राणायाम है। प्राणायाम एक कला है जिसमें तीन क्रियाएं हैं – पूरक, रेचक, कुंभक। पूरक यानी सांस लेना, रेचक यानी श्वास छोडना, तथा कुंभक यानी श्वास को भीतर अथवा बाहर रोक कर रखना। प्राणायाम सदैव किसी योग्य गुरु के सानिध्य में ही करना चाहिए अन्यथा व्यक्ति अपने प्राणों की लय को बिगाड़ सकता है। यह प्राण ही हैं जिससे हमारा जीवन चलता है और प्राण से ही यह संपूर्ण ब्रह्मांड कार्य करता है। यदि आप नए अभ्यासी हैं तो केवल कुछ देर अपनी सांसों पर ध्यान लगाएं । धीरे-धीरे सांस लम्बी और गहरी होती जाएगी। अपनी सांसों पर ध्यान टिकाए रखना ही आपको प्राणायाम तथा ध्यान की गहरी अवस्था में ले जाएगा। बहुत अधिक प्रयास पूर्वक अपनी सांसों को लेना या बाहर फेंकना ना करें। कुछ सुरक्षित प्राणायाम हैं–अनुलोम- विलोम, नाड़ी शोधन, भ्रामरी, शीतली शीतकारी।
योग केवल एक शारीरिक क्रिया नहीं है। यह शरीर, मन और आत्मा तीनों पर काम करता है । योग शरीर को दृढ़ता प्रदान करता है, मन को शांत, निर्मल और निर्विकार करता है, आत्मा को शुद्ध करता है, बल देता है तथा पुष्ट करता है, सही- गलत, सत्य- असत्य का बोध करवाता है, स्वयं के साथ साथ जगत के कल्याण की ओर अग्रसर करता है। सभी निरोगी हों सभी प्रसन्न रहें। तथास्तु।।
सपना‘अनुश्री‘