अमृतसरःपंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह इस सीट से सांसद रहे हैं और इस सीट पर हुए उप-चुनाव में भी कांग्रेस ही जीती है। पंजाब केसरी के संवाददाता नरेश कुमार बता रहे हैं कि इस सीट पर लगातार 2 हार के बाद कैसे भाजपा में अमृतसर से भावी उम्मीदवार को लेकर ङ्क्षचता है और पार्टी को यहां नवजोत सिंह सिद्धू से ज्यादा विश्वसनीय चेहरा ढूंढने के लाले पड़े हुए हैं।अमृतसर लोकसभा सीट ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस के प्रभाव वाली सीट रही है। 1951 के बाद हुए लोकसभा चुनावों में इस सीट पर 17 चुनावों में 10 बार कांग्रेस जीती है। 4 बार यह सीट भाजपा के कब्जे में रही है। एक बार भारतीय जनसंघ और एक बार भारतीय लोकदल ने इस सीट पर कब्जा किया है जबकि एक बार इस सीट पर आजाद उम्मीदवार कृपाल सिंह जीते थे। 2004 के बाद यह सीट भाजपा के प्रभाव वाली सीट बन गई थी क्योंकि नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी में शामिल किए जाने के बाद भाजपा ने 2004 के आम चुनाव के साथ-साथ 2007 के उप चुनाव और 2009 के आम चुनाव में भी यह सीट जीत ली थी। नवजोत सिंह सिद्धू 2009 में पार्टी का अकेला ऐसा चेहरा थे जिन्होंने कांग्रेस की आंधी के बीच इस क्षेत्र में अपनी सीट बचाई थी लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में उनको किनारे किए जाने के बाद पार्टी को यहां पर योग्य चेहरे के लाले पड़ गए हैं। नवजोत सिंह सिद्धू की जगह मैदान में उतारे गए पार्टी के वरिष्ठ नेता व सिद्धू के सियासी गुरु अरुण जेतली को कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने 1,02,770 मतों से हरा दिया। जेतली की हार ऐसे वक्त में हुई जब पूरे देश में भाजपा की आंधी थी और पहली बार भाजपा ने अपने दम पर 282 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की लेकिन जेतली जैसे बड़े चेहरे को अमृतसर में बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा।
जेतली को इस सीट पर 3,80,106 वोट मिले, जबकि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने 4,82,876 वोट हासिल किए।