नई दिल्ली, 11 सितम्बर (प्रेस की ताकत बयूरो)- दुनिया भर में कोरोना वायरस महामारी के प्रकोप को लगभग दो साल से जयादा समय होने वाले हैं। इस दौरान भारत ने कोविड-19 की दो लहर झेली हैं। खासतौर पर दूसरी लहर में साफ हो गया कि कोरोना वायरस किस तरह और किस तेज़ी से हम सभी की ज़िंदगी बदल सकता है। इस पूरे समय पर कोरोना वायरस से जुड़ी कई तरह की नई जानकारियां सामने मिली और अब भी लागातार आ रही हैं। हालांकि, एक बात साफ हो गई है कि कोविड-19 संक्रमण की वजह से सिर्फ फेफड़ों पड़ ही असर पड़ता हो ऐसा नहीं है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि कोरोना वायरस दिल, किडनी, इंटेस्टाइन और लीवर पर भी हमला करता है और उन्हें भी गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। कोरोना वायरस की वजह से होने वाले वायरल निमोनिया से मरीज़ में दूसरे इंफेक्शन होने का ख़तरा बढ़ जाता है।
कोविड-19 से लीवर को क्या है ख़तरा हो सकता है?
कोविड अब सिर्फ बुख़ार, गले में ख़राश या निमोनिया तक ही सीमित नहीं रह गया है, यह अब शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित करने लगा है। आज हम लीवर से संबंधित बीमारियों पर नज़र डालेंगे जैसे पीलिया, पैनक्रियाटिस, पहले से मौजूद पुरानी लीवर की बीमारियों का बिगड़ना और पित्त संबंधी कोलेजनोपैथी का होना आदि। गतिहीन लाइफस्टाइल, मोटापा, डायबिटीज़ से एक्यूट डैमेज होता है और लंबे समय के लिए और ज़्यादा गंभीर समस्याएं होती हैं।
लीवर को नुकसान होने से कैसे बचाया जा सकता है?
गुरुग्राम के पारस हॉस्पिटल के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी डॉ. अमित मित्तल ने लीवर से संबंधित समस्याओं से बचने के कुछ सुझाव बताये हैं?
1. हाथ की साफ़-सफाई और सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखें।
2. जिन मरीज़ों की बीमारी स्टेबल है और कोविड-19 संक्रमण का संभावना नहीं है, उन्हें निर्धारित दवा का सेवन करते रहना चाहिए।
3. ट्रांसमिशन से बचने के लिए क्रोनिक लीवर की बीमारियों से पीड़ित मरीज़ों की नियमित देखभाल के लिए टेलीमेडिसिन सर्विस को इस्तेमाल करने की हिदायत दी गई है। ऐसा माना जाता है कि टेलीमेडिसिन क्रोनिक लीवर की बीमारियों के मरीज़ों के लिए टेर्टीयरी केयर तक उनकी पहुंच बढ़ाने से उनकी हालत में सुधार करता है।
4. इलेक्टिव एंडोस्कोपिक प्रक्रियाओं में देर।
5. मोटापा और ज़्यादा वज़न वाली स्थिति क्रोनिक इन्फ्लेमेटरी की स्थिति से जुड़ी होती है। यह बताता है कि आगे चलकर कॉम्प्लिकेशन बढ़ सकते हैं।
6. ग्लुकोकोर्टिकोइड्स के मरीजों के लिए थेरेपी को अचानक बंद नहीं करना चाहिए, लेकिन अंडरलाइंग बीमारी को नियंत्रित करने के लिए जितना कम संभव हो सके उतना कम डोज़ का उपयोग किया जाना चाहिए, फिर कोविड-19 जोखिम या इन्फेक्शन की स्थिति चाहे जो भी हो।
7. क्योंकि हॉस्पिटल और एंडोस्कोपी सेंटर सामान्य रूप से काम करते हैं, इसलिए वैकल्पिक प्रक्रियाओं के लिए निर्धारित मरीजों पर विचार करने से पहले सिरोसिस और हाल की वैरिकेल ब्लीडिंग /या एंडोस्कोपिक वैरिकाज़ लिगेशन वाले मरीजों को प्राथमिकता दी जाती है।
डायबिटीज़ और मोटापा भी लीवर के फंक्शन के कामकाज को प्रभावित कर सकता हैं, जिसके परिणामस्वरूप इमरजेंसी स्थितियों में कॉम्प्लिकेशन हो सकते हैं। SARS-CoV-2 इंफेक्शन से जुड़ी फिजियोपैथोलॉजी को समझने के लिए लीवर की बीमारी के मरीज़ों की कड़ी निगरानी ज़रूरी है।