भारत त्योहारों का देश है। साल भर में एक के बाद एक त्योहार अपना अमर संदेश सुनाने और जनसाधारण में नया उत्साह और प्रेरणा देने आता है। भारत की जनता इन त्योहारों को बहुत खुसी के साथ मना कर अपनी संस्कृति और सभ्यता के प्रति आदर प्रकट करती है। इन त्योहारों का सा सदियों से चला। आ रहा है, जो भारतीय संस्कृति और सभ्यता साथ-साथ देश के पुराने गौरव को भी प्रगटाउंदा है। दीवाली भी एक ऐसा आदरश -त्योहार है, जो देश के हर हिस्से में बहुत खुसी और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस की महानता के कारण ही इसको त्योहारों का राजा कहा जाता है।
यह त्योहार कार्तिक का महीना की अमावस को मनाया जाता है। लोग अँधेरी रात को दीये जगा कर उसको प्रकाश भरी रात में बदल देते हैं। दीवाली एक ऐसा त्योहार है, जिस के साथ हरेक मत का सम्बन्ध बन गया है। भारत की सभी जातियों और धर्मों के लोग दीवाली को बहुत धूमधाम के साथ मनाउंदे हैं। इस के साथ इस त्योहार की महत्ता ओर भी बढ़ गई है।
भारतीय संस्कृति के आदरश मर्यादा पुरशोतम भगवान राम रावण और जीत प्राप्त करके इस दिन अयुध्या वापस आए थे। 14 बरस के बनवास के बाद श्री राम चंद्र जी की वापसी और लोगों ने बहुत खुसी मनायी और घी के दीये जगाऐ थे आज के दिन ही जैन धर्म के चौवीवें तीर्थकर भगवान महावीर ने जीवन भर सत्य, सांती और हिंसा का अमर संदेश सुणाके मोकस प्राप्त किया था आर्य समाज के संस्थापक रिसी दयानन्द ने “ईशवर तेरी इच्छा पूर्ण हो ’ कह कर अपनी जीवन लीला समाप्त की थी। संस्कृति के महान नेता स्वामी राम तीर्थ ने आज के दिन अपनी देह का त्याग किया था। सिक्खों के छटे गुरू हरगोबिन्द जी ने इसी दिन कैद खाने में से 52 राजाओं को साथ ले कर बाहर आए थे। दीवाली देशवासियें को इन महान आत्मायों को याद करन का सुनेहरी मौका प्रदान करती है।
वैज्ञानिक द्रिशटी के साथ भी दीवाली का बहुत महत्व है। बरसात का मौसम दीवाली के आगमन और समाप्त हो चूे होता है। रास्ते खुल जाते हैं और व्यापार शुरू हो जाता है। नदी नाल्यें में से हड़ों का पानी उतर जाता है। हलकी हलकी जाड़ा पडनी शुरू हो जाती है। लोग हलके -हलके ऊनी कपड़े पहनने शुरू कर देते हैं। हर जगह पर मौसम सुहावना हो जाता है। सलाभे भरे घरों में सफ़ाई की जाती है। दीवाली का यह एक भारी लाभ है कि हम इस तरह घरों की सफ़ाई कर लेते हैं। मीठी -मीठी ठंड में सुनेहरी धूप में सावन की फ़सल की फ़सल भी घर आनी शुरू हो जाती है।
दीवाली के स्वागत की तैयारियाँ कई दिन पहले से ही शुरू हो जातीं हैं। दीवाली से दो दिन पहले धन रस होती है। इस दिन लोग अपने दरवाजों और दीये जगा कर रखते हैं और यमराज की पूजा करते हैं। इस दिन लोग नये -नये बर्तन खरीदते हैं। दीवाली के दिन शहरों के बाज़ारों की शोभा देखते ही बनती है। हलवाई लोग तरह -तरह की मिठाईआं सजा कर अकड़ कर बैठते हैं। लोग बाज़ारों में घूम फिर कर कभी मिठाईआं खरीदते और कभी लकशमी गनेश की मूर्तियाँ खरीदते हैं और बच्चे तो बस पटाख़ों के लिए ही माता -पिता नूं तंग करते हैं।
रात को हर घर में लकशमी -पूजा करने होता है, बाद लोग अपने घरों के बनेरों और, चौराहों और, मंदिरों में दीये जगाते हैं। बच्चों को तो बस पटाख्यों की ही लगी रहती है। कोई अनार चलाता है, कोई सुदरशन चक्कर और कोई फुलझड़ी। चारों तरफ़ लोग मिठाईआं खाते, खुशियें मनाउंदे और एक -दूसरे को दीवाली की बढ़ाईं देते हैं। कुछ लोग इस पवित्र रात को जुआ खेलते और। सराब पीते हैं और इस त्योहार की पवित्रता को भांग करते हैं। इस तरह के लोग इन त्योहारों का महत्व कम कर देते हैं और अपना भी दिवाला निकाल लेते हैं।
स्वतंत्र भारत के हरेक नागरिक का यह पहला कर्तव्य है कि वह इन त्योहार को पवित्र ढंग के साथ मना कर इन को स्थिर बनाई। रखे। ऐसा करन के साथ ही हम अपनी संस्कृति की महान सेवा कर सकेंगे।