चंडीगढ़ (पीतांबर शर्मा): हर वर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 3 अगस्त सोमवार को है। रक्षाबंधन का त्योहार बहन और भाई के आपसी प्रेम और स्नेह का त्योहार है।
रक्षाबंधन के दिन राखी बांधने के समय भद्राकाल और राहुकाल का विशेष ध्यान दिया जाता है। हिन्दू सुरक्षा समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा श्री हिन्दू तख्त के धर्माधीश तथा कामाख्या पीठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु पंचानंद गिरि महाराज कहते हैं कि शास्त्रों के अनुसार भद्राकाल में राखी बांधना शुभ नहीं होता। इसलिए रक्षाबंधन के दिन भद्राकाल में विशेष ध्यान दिया जाता है। मान्यता है कि भद्राकाल में किसी भी तरह के शुभ कार्य करने पर उसमें सफलता नहीं मिलती।
जगद्गुरु पंचानंद गिरि महाराज कहते हैं कि यह भाई बहन के प्रेम का त्योहार है। इसमें भाई बहन की रक्षा का वचन देता है। पौराणिक कथाओं में भी रक्षाबंधन का जिक्र है। सबसे पहले माता लक्ष्मी ने राजा बलि को बांधी राखी थी तथा राजा बलि को अपना भाई बनाकर भगवान विष्णु को उनके दिए गए वचन से मुक्त कराया था।
जगद्गुरु पंचानंद गिरि महाराज कहते हैं कि द्वापर युग में शिशुपाल राजा का वध करते समय भगवान श्री कृष्ण के बाएं हाथ से खून बहने लगा तो द्रोपदी ने तत्काल अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर उनके हाथ की अंगुली पर बांध दिया। कहा जाता है कि तभी से भगवान कृष्ण द्रोपदी को अपनी बहन मानने लगे और सालों के बाद जब पांडवों ने द्रोपदी को जुए में हरा दिया और भरी सभा में जब दुशासन द्रोपदी का चीरहरण करने लगा तो भगवान कृष्ण ने भाई का फर्ज निभाते हुए उसकी लाज बचाई थी। मान्यता है कि तभी से रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाने लगा जो आज भी बदस्तूर जारी है। श्रावण मास की पूर्णिमा को भाई-बहन के प्यार का त्योहार रक्षाबंधन मनाया जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भद्रा में राखी न बंधवाने के पीछे एक कथा प्रचलित है। जिसके अनुसार लंका के राजा रावण ने अपनी बहन से भद्रा के समय ही राखी बंधवाई थी। भद्राकाल में राखी बाधने के कारण ही रावण का सर्वनाश हुआ था। इसी मान्यता के आधार पर जब भी भद्रा लगी रहती है उस समय बहनें अपने भाइयों की कलाई में राखी नहीं बांधती है। इसके अलावा भद्राकाल में भगवान शिव तांडव नृत्य करते हैं इस कारण से भी भद्रा में शुभ कार्य नहीं किया जाता है।
जगद्गुरु पंचानंद गिरि महाराज कहते हैं कि एक अन्य मान्यता के अनुसार भद्रा शनिदेव की बहन है। भद्रा शनिदेव की तरह उग्र स्वभाव की हैं। भद्रा को ब्रह्मा जी ने श्राप दिया कि जो भी भद्राकाल में किसी भी तरह का कोई भी शुभ कार्य करेगा उसमें उसे सफलता नहीं मिलेगी। भद्रा के अलावा राहुकाल में भी किसी तरह का शुभ कार्य करना वर्जित माना गया है। शास्त्रों में रक्षाबंधन का त्योहार भद्रा रहित समय में करने का विधान है।
जगद्गुरु पंचानंद गिरि महाराज कहते हैं कि इस कारण से इस बार 3 अगस्त को भद्रा का विशेष ध्यान रखें और भद्रा की समाप्ति के बाद ही राखी बांधे। भद्रारहित काल में भाई की कलाई में राखी बांधने से भाई को कार्य सिद्धि और विजय प्राप्त होती है।
जगद्गुरु पंचानंद गिरि महाराज कहते हैं कि ज्योतिषाचार्यों के अनुसार 3 अगस्त को सोमवार और सोम का ही नक्षत्र होने रक्षाबंधन का मुहूर्त बहुत ही शुभ रहेगा।
सुबह 07 बजकर 18 मिनट पर सूर्य का नक्षत्र उत्तराषाढ़ समाप्त हो रहा है और चन्द्र के नक्षत्र श्रवण आरम्भ होगा। इस बार रक्षाबंधन के दिन भद्राकाल ज्यादा देर के लिए नहीं रहेगा।
ध्यान रखें:- भद्रा का समय: 3 अगस्त को सुबह 9 बजकर 29 मिनट तक भद्रा रहेगी उसके बाद भद्रा खत्म हो जाएगी।। भद्रा की समाप्ति के बाद पूरे दिन राखी बांधी जा सकती है।
राहुकाल: राहुकाल में भी किसी तरह का शुभ कार्य नहीं किया जाता है। इसलिए भद्रा के साथ राहुकाल का विशेष ध्यान रखना चाहिए। 3 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन राहुकाल का समय सुबह 7 बजकर 30 मिनट से 9 बजे तक होगा।
राखी बांधने का शुभ मुहूर्त: सुबह 9ः30 से रात्रि 21ः11 मिनट तक
ज्योतिषियों के अनुसार राखी को सही समय पर सही विधि से बांधना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले भाई को पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके बैठाना चाहिए। इसके बाद बहन को अच्छे से पूजा की थाली सजानी चाहिएष पूजा की थाली में चावल, रौली, राखी, दीपक होना चाहिए। इसके बाद बहन को भाई के अनामिका उंगली से टीका कर चावल लगाने चाहिए। अक्षत अखंड शुभता को प्रदर्शित करते हैं। उसके बाद भाई की आरती उतारनी चाहिए और उसके जीवन की मंगल कामना करनी चाहिए। कई जगह बहनें इस दिन अपने भाई की सिक्के से नजर भी उतारती हैं।