चंडीगढ़, 17 सितम्बर (शिव नारायण जांगड़ा)- देश में काले कृषि कानून लाए जाने का एक वर्ष पूरा होने पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने आज केंद्र से ये कानून तुरंत रद्द करने की माँग करते हुए आगे बढ़ने के लिए किसानों के साथ विस्तार में बातचीत करने के लिए कहा।
किसानों के प्रदर्शनों में बहुत से किसानों की मौत हो जाने का ज़िक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह उपयुक्त समय है कि केंद्र अपनी गलती को समझे और किसानों और देश के हित में कानून वापस लिए जाएँ।
मुख्यमंत्री ने आज पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी, लुधियाना द्वारा करवाए तीसरे राज्य स्तरीय वर्चुअल किसान मेले के उद्घाटन के मौके पर ‘यदि किसान नहीं तो भोजन नहीं’ का बैज लगाया हुआ था। पंजाब सरकार द्वारा पराली जलाए जाने के रुझान को ख़त्म करने के लिए की जा रही कोशिशों की तर्ज़ पर इस दो दिवसीय मेले का मुख्य विषय भी ‘करीए पराली दी संभाल, धरती माँ होवे ख़ुशहाल’ है।
मुख्यमंत्री ने कहा, “अब तक संविधान में 127 बार संशोधन किया जा चुका है तो फिर कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए एक बार फिर से संशोधन क्यों नहीं किया जा सकता और इन कानूनों के साथ पैदा हुई पेचीदा स्थिति को हल किया जाये।“ कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार जो किसानों को तबाह करने पर तुली हुई है, को पूछना चाहते हैं, “128वीं बार संशोधन करने में आपको क्या दिक्कत हो रही है।“
कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि देश की प्रगति और विकास में बेमिसाल योगदान देने वाले किसान भाईचारे के साथ आज जो कुछ भी घट रहा है, वह बहुत ही दुखदायक है। उन्होंने इन कानूनों को तुरंत रद्द करने की माँग करते हुए कहा कि यह कानून सिर्फ़ किसान भाईचारे के लिए ही नहीं बल्कि समूचे देश के लिए घातक हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि बीते नवंबर महीने में जब पंजाब के किसानों ने दिल्ली की तरफ कूच किया था तो केंद्र ने उनको इन्हें रोकने के लिए कहा था तो उन्होंने दो-टूक जवाब दे दिया था क्योंकि रोश प्रकट करना किसानों का लोकतांत्रिक हक है। उन्होंने कहा, “किसानों को संघर्ष क्यों नहीं करना चाहिए। मैं उनको कैसे रोक सकता हूं।“ उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि वह इन घातक कानूनों के खि़लाफ़ किसानों की लड़ाई में उनके साथ खड़े रहेंगे और उनकी सरकार मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवज़ा और नौकरियाँ देना जारी रखेगी।
देश की तरक्की में पंजाब और इसके किसानों के योगदान का ज़िक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का केवल 1.53 प्रतिशत हिस्सा होने के बावजूद पंजाब देश के कुल गेहूँ की 18 प्रतिशत पैदावार, गेहूँ की 11 प्रतिशत पैदावार, कपास की 4.4 प्रतिशत पैदावार और दूध की 10 प्रतिशत पैदवार करता है। राज्य के किसानों की उपलब्धियों पर गर्व महसूस करते हुए पिछले कई दशकों से पंजाब केंद्रीय भंडार में गेहूँ का 35-40 प्रतिशत और चावल का 25-30 प्रतिशत योगदान डाल रहा है।
मुख्यमंत्री ने बताया कि साल 2018-19 दौरान राज्य ने गेहूँ के उत्पादन (5188 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) और 182.6 लाख टन के उत्पादन का रिकार्ड कायम किया है। राज्य ने साल 2017-18 दौरान चावल की पैदावार (4366 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) और उत्पादन 133.8 लाख टन के उत्पादन का रिकार्ड भी प्राप्त किया। इसी तरह साल 2019-20 दौरान भी कपास की पैदावार (827 किलोग्राम गांठ प्रति हेक्टेयर) में रिकार्ड बनाया। उन्होंने कहा कि इन उपलब्धियों का श्रेय पंजाब के किसानों और पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित की गई सुधरी हुई कृषि प्रौद्योगिकियों को जाता है।
मुख्यमंत्री, जिन्होंने साल 1970 से ही किसान मेलों में शिरक्त करते होने को याद किया, ने कृषि के पंजाब की जीवन रेखा होने की महत्ता पर ज़ोर दिया और किसानों को नयी तकनीकों और बीजों आदि के क्षेत्र में पी.ए.यू. द्वारा की जा रही खोजों से लाभ लेने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि दुनिया भर में कृषि क्षेत्र में आ रहे बदलावों के हमसफर बनने के लिए लगातार खोज कार्य करते रहने की ज़रूरत है। पानी के घटते जा रहे स्तर के मद्देनज़र इस संसाधन का सावधानी से इस्तेमाल करने सम्बन्धी इजराइल की तरफ से ड्रिप इरीगेशन (बूंद सिंचाई प्रणाली) की कामयाबी से प्रयोग करने सम्बन्धी मिसाल देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब के ज़मीनी पानी का स्तर लगातार नीचे जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य के विभिन्नता प्रोग्राम का सीधा सम्बन्ध पानी का कम से कम प्रयोग यकीनी बनाने से है।
इससे पहले अतिरिक्त मुख्य सचिव (विकास)-कम-उप कुलपति पी.ए.यू. अनिरुद्ध तिवारी ने कहा कि कोविड महामारी के दौरान मुख्यमंत्री ने सभी विभागों को सुचारू ढंग से कामकाज जारी रखना यकीनी बनाने के लिए नवीन ढंग अपनाने के लिए कहा था और किसानों को सहायक सेवाओं और वर्चुअल किसान मेले इस दिशा में उठाये गए कदम थे। उन्होंने आगे कहा कि जो किसान निजी तौर पर पहले इस मेले में हिस्सा नहीं ले सके वह अब वर्चुअल तौर पर ऐसा कर सकते हैं।
मेले के विषय संबंधी रौशनी डालते हुए अनिरुद्ध तिवारी ने कहा कि पंजाब की तरफ से भारत सरकार से पराली प्रबंधन हेतु किसानों के लिए 100 रुपए प्रति क्विंटल की सहायता माँगी जा रही है और मुख्यमंत्री ने निजी तौर पर प्रधानमंत्री से कई बार यह मुद्दा उठाया है। अतिरिक्त मुख्य सचिव ने राज्य सरकार द्वारा पराली जलाने को रोके जाने और फ़सली विभिन्नता को बढ़ावा देने के लिए उठाये जा रहे कदमों संबंधी भी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा बाग़बानी और सब्जियों को भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है जिससे किसानों को गेहूँ और धान के चक्र में से निकाला जा सके।
पी.ए.यू. के डायरैक्टर (एक्स्टेंशन ऐजुकेशन) डा. जसकरन सिंह माहल ने किसान मेले की पहुँच संबंधी बताया जिसमें देश भर से किसान हिस्सा लेने के लिए वर्चुअली जुड़े हैं। उन्होंने आगे बताया कि इस किसान मेले के प्रभाव को व्यापक बनाने के लिए इसका सीधा प्रसारण और किसानों के साथ यू ट्यूब और फेसबुक पर बातचीत को यकीनी बनाया गया है।
इस मौके पर अपने संबोधन में गुरू अंगद देव वैटरनरी और ऐनिमल सायंसेज़ यूनिवर्सिटी, लुधियाना के उप कुलपति डा. इन्द्रजीत सिंह ने मेले को किसानों के हक में एक अहम मंच कहा। उन्होंने आगे कहा कि इन किसान मेलों से कृषि के क्षेत्र में उठाये जा रहे नये कदम -गुणवत्ता भरपूर बी और कई फसलों की संशोधित किस्मों के लिए बीजाई का सामान सम्बन्धी, बाग़बानी और सब्ज़ी वाली फसलों के बारे ज़रूरी जानकारी किसानों को पी.ए.यू. कैंपस और पंजाब भर में स्थित आउट स्टेशनों से मुहैया करवाई जा रही है।
इस किसान मेले के दौरान वर्चुअल ढंग से कई विचार-विमर्श वाले सैशन होंगे जोकि फसलों के अवशेष के प्रबंधन, बाग़बानी और जंगलात फसलों की संभावना, कुदरती स्रोत प्रबंधन, पशुधन उत्पादन और सहायक धंधे, प्रोसेसिंग, मूल्य वृद्धि (वेल्यु एडीशन) और एफ.पी.ओज़. आदि से सबंधित होंगे।
इसके इलावा डिजिटल सामान जैसे कि चार्ट, वीडीयोज़ और क्षेत्रीय प्रदर्शनों के दौरान आडीयो के द्वारा सभी पक्ष समझाए जाने, फूड प्रोसेसिंग, पूरक और सहायक धंधे आदि किसानों को उनके ज्ञान में विस्तार करने के लिए दर्शाए भी जा रहे हैं।
किसानों के सवालों के जवाब देने के लिए एक लिंक ’माहिरों के साथ बात करो’ (सवाल आपके जवाब हमारे) भी किसानों के साथ सांझा किया गया है और एक दूसरा लिंक किसानों द्वारा हासिल की सफलताओें के इलावा, सेल्फ हेल्प ग्रुपों और किसान उत्पादक संगठनों (एफ.पी.ओज़) भी पी.ए.यू. के ट्रेनियों के द्वारा चलाया जा रहा है।