छिंदवाड़ा.- (भगवानदीन साहू)- बहुत से धार्मिक एवं सामाजिक संगठनों ने सविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर जी की जयंती पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर , जिले के सांसद विवेक ( बंटी ) साहू और जिला कलेक्टर को महामहिम राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपकर न्यायधीशों पर भी दण्ड का कानून बने माँग की। ज्ञापन में बताया कि – न्याय सबके लिए सस्ता , सुगम और सरल हो यह सविधान में प्रदत्त है। आज भी मेरे जैसे लोग न्यायालय को न्याय मंदिर कहते हैं और न्यायाधीश को भगवान का दर्जा देते हैं । पर कुछ दिनों में ऐसे मामले प्रकाश में आये जिससे आम लोगों का विश्वास न्याय व्यवस्था के प्रति कम हो रहा है । सर्वप्रथम , इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश शुक्ला के पास आय से अधिक संपत्ति का मामला , इलाहाबाद हाईकोर्ट के कार्यरत न्यायाधीश राम मनोहर मिश्रा की टिप्पणी , कि महिला के प्राइवेट पार्ट्स का छूना और उसके पजामे की डोरी खोलना बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता एवं दिल्ली हाइकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर से लगभग 800 करोड़ रुपये के जले नोट मिलना ; यह सब घटनाक्रम लचर और भ्रष्ट न्याय व्यवस्था की पोल खोलता है । इसके पूर्व गुजरात के गृहमंत्री और देश के वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह पर भी जबरन मुकदमा दायर कर उनके राजनीतिक भविष्य से खिलवाड़ किये जाने का असफल प्रयास किया गया । ऐसे अनगिनत मामले हैं । सन 2012 में 14 नवंबर को सभी राजनीतिक दलों की सहमति से पॉक्सो एक्ट बनाया गया बाल उत्पीड़न को ध्यान में रखते हुए ; जिसमें आरोप सिध्द हो जाने पर अधिकतम 10 वर्षों की सजा का प्रावधान रखा गया । जिसके पहले शिकार बने सन 2013 में सनातन संस्कृति के रक्षक सन्त श्री आशारामजी बापू । जिनके खिलाफ कोई ठोस गवाह और सबूत थे ही नहीं । फिर आचनक 22 अप्रैल 2018 को प्रधानमंत्री के निवास पर एक बैठक आयोजित की गई । उस दिन इस एक्ट में संशोधन किया गया और 10 वर्ष सजा के प्रावधान की जगह उम्रकैद की सजा का प्रावधान रखा गया । 23 अप्रैल को इस संशोधित एक्ट को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर हुए और ठीक 2 दिन बाद मतलब 25 अप्रैल 2018 को इस संशोधित एक्ट के तहत आशाराम बापू को उम्र कैद की सजा सुना दी गई । यह सदी का सबसे क्रूरतम फैसला है। जबकि संविधान के नियमानुसार कोई भी संशोधन बिल पहले लोकसभा सभा में फिर राज्यसभा में पारित होता है। फिर महामहिम राष्ट्रपति जी के पास हस्ताक्षर हेतु जाता है। फिर राष्ट्रपति जी 6 माह के अंदर विधि के जानकारों से सलाह मशविरा कर हस्ताक्षर कर सरकारी राजपत्र में प्रकाशित करता है । यह एक जटिल संवैधानिक प्रक्रिया है । उदाहरण स्वरूप वफ्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2025 और महिला आरक्षण विधेयक 2023 में प्रारित हुआ जो 2026 में लागू हो सकता है । पर यहाँ इसका विधिवत पालन हुआ ही नही । संत आशाराम बापूजी के केस की सुनवाई करने वाले सेशन न्यायधीश मधुसूदन शर्मा के उस दौरान के कॉल डिटेल्स और उसकी सम्पत्ति की खोजबीन करें तो सारा मामला सामने आ जायेगा कि कैसे निर्दोष सन्त को फंसाया गया। यह सनातन संस्कृति पर सुनियोजित हमला है। भ्रष्ट न्यायव्यवस्था और भ्रष्ट राजनीतिक तंत्र के गठजोड़ से हाल ही में प्रदर्शित हुई छावा मूवी के औरंगजेब की याद ताजा हो जाती हैं । साधकों को या देशवासियों को ऐसा महसूस होता हैं कि न्याय व्यवस्था भ्रष्ट राजनेता या भ्रष्ट न्यायाधीश चला रहें हैं और यहाँ न्यायाधीश न्याय नहीं बल्कि सरकारी नौकरी कर रहें हैं । संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर जी की जयंती पर उनकी प्रतिमा के समक्ष प्रार्थना कर उचित कार्यवाही की मांग की गई। ज्ञापन देते समय आधुनिक चिंतक हरशूल रघुवंशी , राष्ट्रीय बजरंग दल के नितेश साहू , कुनबी समाज के युवा नेता अंकित ठाकरे , साहू समाज के ओमी साहू , कलार समाज के प्रतिष्ठित बबलू सूरज प्रसाद माहोरे , कुनबी समाज के प्रतिष्ठित सुभाष इंगले , युवा सेवा संघ के ओमप्रकाश डहेरिया , अश्विन पटेल , अशोक कराड़े आई. टी. सेल के प्रभारी भूपेश पहाड़े आदि मुख्य रूप से उपस्थित रहे ।