वक्त बदलते …… वक्त नहीं लगता….. इसलिये जिसका वक्त खराब चल रहा हो … तो उसका उपहास और अनादर ना करें।
युधिष्ठिर ….. कंक बन गये।
धर्मराज युधिष्ठिर ने विराट के दरबार में पहुँचकर कहा- “हे राजन! मैं व्याघ्रपाद गोत्र में उत्पन्न हुआ हूँ तथा मेरा नाम ‘कंक’ है। मैं द्यूत विद्या में निपुण हूँ। आपके पास आपकी सेवा करने की कामना लेकर उपस्थित हुआ हूँ।”
द्यूत …… जुआ ……यानि वह खेल जिसमें धर्मराज अपना सर्वस्व हार बैठे थे। कंक बन कर वही खेल वह राजा विराट को सिखाने लगे।
जिस बाहुबली के लिये रसोइये दिन रात भोजन परोसते रहते थे वह भीम बल्लभ का भेष धारण कर स्वयं रसोइया बन गया।
नकुल और सहदेव पशुओं की देखरेख करने लगे।
दासियों सी घिरी रहने वाली महारानी द्रौपदी …….स्वयं एक दासी सैरंध्री बन गयीं।
……और वह धनुर्धर। उस युग का सबसे आकर्षक युवक ….वह महाबली योद्धा। वह द्रोण का सबसे प्रिय शिष्य। वह पुरुष जिसके धनुष की प्रत्यंचा पर बाण चढ़ते ही युद्ध का निर्णय हो जाता था।
वह अर्जुन …. पौरुष का प्रतीक अर्जुन।
नायकों का महानायक अर्जुन।
……..एक ……..नपुंसक बन गया।
एक नपुंसक ?
उस युग में पौरुष को परिभाषित करने वाला अपना पौरुष त्याग कर ……होठों पर लाली लगा कर …आंखों में काजल लगा कर ….. एक नपुंसक …..”बृह्नला” बन गया।
युधिष्ठिर राजा विराट का अपमान सहते रहे। पौरुष के प्रतीक अर्जुन एक नपुंसक सा व्यवहार करते रहे। नकुल और सहदेव पशुओं की देख रेख करते रहे……भीम रसोई में पकवान पकाते रहे और द्रौपदी…. एक दासी की तरह महारानी की सेवा करती रहीं।
परिवार पर एक विपदा आयी तो धर्मराज अपने परिवार को बचाने हेतु कंक बन गया। पौरुष का प्रतीक …. एक नपुंसक बन गया।
एक महाबली ……साधारण रसोईयां बन गया।
पांडवों के लिये वह अज्ञातवास नहीं था … अज्ञातवास का वह काल उनके लिये अपने परिवार के प्रति अपने समर्पण की पराकाष्ठा थी।
वह जिस रूप में रहे .. जो अपमान सहते रहे .. जिस कठिन दौर से गुज़रे … उसके पीछे उनका कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं था। अज्ञातवास का वह काल ……परिस्थितियों को देखते हुये …..परिस्थितियों के अनुरूप ढल जाने का काल था।
आज भी इस राष्ट्र में अज्ञातवास जी रहे ना जाने कितने महायोद्धा दिखाई देते हैं। कोई धन्ना सेठ की नौकरी करते हुये उससे बेवजह गाली खा रहा है क्योंकि उसे अपनी बिटिया की स्कूल की फीस भरनी है।
बेटी के ब्याह के लिये पैसे इकट्ठे करता बाप एक सेल्समैन बन कर दर दर धक्के खा कर सामान बेचता दिखाई देता है।
……….गिनवाने लगूं तो शायद ऐसे असँख्य उदाहरणों से लेखों की शृंखला लिख दूं। ऐसे असँख्य पुरुषों के रोज़ के सँघर्ष की सत्यकथाओं से हर रोज़ पाठकों को रूबरू करवा दूं जो अपना सुख दुःख छोड़ कर अपने परिवार के अस्तिव की लड़ाई लड़ रहे हैं।
रोज़मर्रा के जीवन में किसी संघर्षशील व्यक्ति से रूबरू हों तो उसका आदर कीजिये। उसका सम्मान कीजिये।
राह चलता गुब्बारे बेचने वाला आपकी गाड़ी के शीशे पर दस्तक इसलिये दे रहा है क्योंकि उस गुब्बारे के बदले में मिलने वाले चंद रुपयों में उसकी नन्हीं सी बिटिया की रोटी छिपी है।
फैक्ट्री के बाहर खड़ा गार्ड……होटल में रोटी परोसता वेटर…..सेठ की गालियां खाता मुनीम……. वास्तव में कंक …….बल्लभ और बृह्नला हैं।
वह अज्ञातवास जी रहे हैं……!
परंतु वह अपमान के भागी नहीं हैं। वह प्रशंसा के पात्र हैं। यह उनकी हिम्मत है.. उनकी ताकत है …. उनका समर्पण है कि विपरीत परिस्थितियों में भी वह डटे हुये हैं।
वह कमजोर नहीं हैं ……उनके हालात कमज़ोर हैं…..
उनका #वक्त कमज़ोर है।
याद रहे……
अज्ञातवास के बाद बृह्नला जब पुनः अर्जुन के रूप में आयी तो कौरवों का नाश कर दिया। पुनः अपना यश …..अपनी कीर्ति सारे विश्व में फैला दी।
वक्त बदलते …… वक्त नहीं लगता….. इसलिये जिसका वक्त खराब चल रहा हो … तो उसका उपहास और अनादर ना करें।
उसका सम्मान करें ….. उसका साथ दें।
क्योंकि एक दिन अज्ञातवास अवश्य समाप्त होगा। समय का चक्र घूमेगा और बृह्नला का छद्म रूप त्याग कर धनुर्धर अर्जुन इतिहास में ऐसे अमर हो जायेंगे के पीढ़ियों तक बच्चों के नाम उनके नाम पर रखे जायेंगे। इतिहास बृह्नला को भूल जायेगा। इतिहास अर्जुन को याद रखेगा।
हर सँघर्षशील व्यक्ति में बृह्नला को मत देखिये। कंक को मत देखिये। भल्लब को मत देखिये। हर सँघर्षशील व्यक्ति में धनुर्धर अर्जुन को देखिये। धर्मराज युधिष्ठिर और महाबली भीम को देखिये।
क्योंकि एक दिन हर संघर्षशील व्यक्ति का अज्ञातवास खत्म होगा।
यही नियति है।
यही समय का चक्र है।
यही महाभारत की सीख है।