जंग बेपरवाह होती है. वो नहीं देखती मासूम बच्चों के चेहरे, वो नहीं देखती मत और मजहब. नहीं समझती एक मां का दर्द, एक पिता का सूनापन और एक भाई की लाचारी. चंद मिनटों में ख़ाक हो जाती हैं इमारतें, उनमें दब के दम तोड़ देते हैं न जाने कितने परिवारों के सपने. मां की गोद में मुस्कराता ये मासूम और बेसबब रोती उसकी मां. अस्पताल के एक कोने में फूट फूटकर रोती हुई मां का शायद कोई कसूर नहीं है. उसकी गोद में लेटे मासूम को न तो जंग का मतलब पता है और न ही बर्बादी का. उसको शायद गाज़ा और फिलस्तीन भी नहीं पता. उसको नहीं पता ये इजरायल हमारा क्यों दुश्मन है. उसको नहीं पता कि हमास क्यों लड़ाई कर रहा है. शायद कोई यहूदी आकर इस बच्चे को गोद लेगा तो ये उसको देख भी मुस्करा देगा. मां बेबस होकर जर्जर और ज़मींदोज़ उस अस्पताल की चौखट पर रो रही है. शायद कोई डॉक्टर आएगा और वो उसको सही कर देगा.हमास और इजरायल की खौफनाक जंग में हजारों लोगों की जान जा रही है. गाजा पट्टी तबाह हो गया है. अस्पताल खा़क में मिल चुके हैं. लहुलुहान बच्चों के प्राण मां-बाप की गोद में निकल रहे हैं. अंत में एक शेर है साहिर लुधियानवी साहब का. जंग तो ख़ुद ही एक मसला है, जंग क्या मसलों का हल देगी.मगर अफसोस कोई नहीं है जो इस तस्वीर में बच्चे की मुस्कुराहट और मां के आंसुओं को समझ पाए. यह तस्वीर अनगिनत सवाल कर रही है कि कसूर हमारा क्या है. हम किसकी सनक का शिकार बन रहे हैं. क्या हमारी गलती सिर्फ इतनी सी है कि हम उस इलाके के हिस्सा हैं जिसके लिए जंग लड़ी जा रही है.
गाजा स्थित अहली अरब अस्पताल पर मंगलवार की रात एक बम गिरा, धमाका हुआ और धुएं का गुबार उठा. जब तस्वीर कुछ देर बाद साफ हुई तो हर तरफ से सिर्फ चीख पुकार सुनाई दे रही थी. मंजर दिल दहलाने वाला, हर तरफ मलबा और बेजान शरीर. कुछ ऐसे लोग भी थे जो इस भयानक हमले में बच गए लेकिन लड़ाई अब जिंदगी बचाने और सहेजने की है. इन सबके बीच आरोप और प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो चुका है, हमास ने इस हमले के लिए सीधे तौर पर इजरायल को जिम्मेदार ठहराया है. इस हमले में करीब 300 लोगों की मौत हुई है.